दुनिया के लिए अभी भी अनसुलझी पहेली है बहरुपिया कोराना वायरस

दुनिया के लिए अभी भी अनसुलझी पहेली है बहरुपिया कोराना वायरस

सेहतराग टीम

वायरस के प्रकोप से दुनिया को वाकिफ हुए छह महीने बीत चुके हैं। इस बीच इस सार्स-कोव-2 वायरस (sars cov-2 virus) को लेकर काफी शोध (Research) के बाद वैज्ञानिकों ने कई तथ्य सामने रखे। मास्क के इस्तेमाल की जरुरत से लेकर आजीबोगरीब लक्षणों के बारे में भी बताया। लेकिन इन सबके बावजूद ये नया कोरोना वायरस (Coronavirus) अब भी एक अबूझ पहेली (unsolved puzzle)  बना है जिसके बारे में कई वैज्ञानिक तथ्यों (Facts) का अब तक खुलासा नहीं हो सका है। वैज्ञानिक कैसे और कब इन सवालों के हल ढूंढते हैं वह इस वायरस के साथ हमारा भविष्य तय करेगा।

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अब तक संक्रमितों की संख्या का पता नहीं हैं। अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार 28 मई तक 19 लाख लोग पॉजिटिव थे। जबकि, जॉन हौपकिंस सेटर फॉर हेल्थ सिक्योरिटी के अनुसार 17 लाख संक्रमित थे। डाटा विशेषज्ञों के अनुसार यह संख्या कहीं ज्यादा होनी चाहिए। न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रयू कूमो के अनुसार 22 मई तक बीस फीसदी नागरिक चपेट में आ चुके थे। डाटा विश्लेषकों के अनुसार लॉकडाउन के पहले ही यहां 12 लाख संक्रमित हो चुके थे। सीडीसी के अनुसार 22 मई तक 35 फीसदी संक्रमितों में कोई लक्षण नहीं था। जबकि, आज रोज 21000 मिल रहे हैं। यानी हर महीने 210000 साइलेंट स्प्रेडर या बीमारी फैलनाने वले बन रहे हैं. ऐसे में कितना भी व्यापक कांटैक्ट ट्रेसिंग प्रोग्राम असली संख्या नहीं ढूंढ पाएगा।

संक्रमण लायक वायरस लोड का आंकड़ा तय नहीं

वैज्ञानिक बताते है कि एक से एक लाख तक वायरस लोड बीमार करने के लिए काफी है। पर कोई वैज्ञानिक तय आंकड़ा नहीं दे पा रहा। कोलंबिवा यूनिवर्सिटी की वायरलॉजिस्ट एजेंला कहती है, इसे लेकर कोई पैमाना नहीं पर ये वायरस इंफ्लूएंजा वायरस की तरह संक्रमण फैलाता है। कई लोग बिना बीमार हुए भी इसका प्रसार करते हैं। लेकिन इसकी संरचना, चमगादड़ों से शुरुआत व अन्य लक्षणों को देखें, तो यह अन्य कोरोना वायरसों के करीब है। ऐसे में वैंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के संक्रामक रग विशेषज्ञ डॉ. विलियम शैफनर बताते है कि पहले संपर्क में ही वायरस का बड़ा डोज शरीर में आ जाए तो हालत तेजी से बिगड़ती है।

क्यों कुछ को ही ज्यादा बीमार कर रहा है वायरस

वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 बड़ा चंचल है। इसके कुछ शिकार तो बिल्कुल सामान्य रहते है तो कुछ गंभीर फ्लू जैसे लक्षणों के साथ मौत के दरवाजे तक पहुंच जाते हैं। ऐसा क्यों होता है यह इस वायरस से जुड़ा सबसे बड़ा रहस्य है। विशेषज्ञों का कहन है कि वे सब शिकार के प्रतिरोध क्षमता पर निर्भर करता है। अगर शरीर की प्रतिरोधी क्षमता वायरस से संतुलन खोकर ज्यादा प्रतिक्रिया देने लगे तो फभिर शरीर को दुष्परिणाम झेलने से कोई बचा नहीं पाता। इसके अलावा, प्रतिरोधी क्षमता उम्र के साथ कमजोर होने लगी है। ऐसे में बुजुर्ग या ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, दिलो की बीमारी से पीड़ित लोग इस बीमारी को झेल नहीं पाते। मोटापे से भी समस्या होती है। कुछ वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि पुरुष इस बीमारी से ज्यादा बीमार हो रहें हैं क्योंकि महिलाओं की प्रतिरोधक क्षणता अधिक मजबूत होती है।

बीमारी के प्रसार में बच्चों की भूमिका

बच्चों को लेकर कई भ्रम है। पर इनके जवाब से यह तय ह पाएगा कि स्कूल, डे केयर, क्रेच और बच्चोचं से जुड़े दूसरे केंद्र कब खोलना सही होगा। सबसे बड़ी पहेली है कि बच्चों से इस वायरस का प्रसार कैसे और कितना होता है। देखा गाया है कि वे बड़ों की तुलना मं कम प्रभावित होते हैं। अमेरिका में मात्र दो फीसदी बच्चे संक्रमित है। कुछ का मानना है कि ऐसा इसलिए क्योंकि वे जल्दी संक्रमित नहीं तो कुछ का मानना है कि वायरस उन्हें इतनी आसानी से चपेट में लेता है कि लक्षण ही नहीं दिखते। हालांकि यह स्पष्ट है कि बच्चे भी वायरस का उसी तरह प्रसार करते हैं जैसे कोई वयस्क। हाल में एक शोध में तो यह भी दावा किया गया है कि स्कूल जाने पर बच्चे बड़ों की तुलना में तीन गुना अधिक लोगों के संपर्क में आते है। इससे उनमेंम संक्रमण का खतरा भी अधिक होता है।

 

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